यह 1000-2000 एकड़याउससेअधिकहोसकतीथीजिसमेंनाइटऔरउसकेपरिवारकेलिएएकपनचक्कीऔरमदिरासंपीडककेअतिरिक्त,उसकेवउसकेपरिवारकेलिएघर,चर्चऔरउसपरनिर्भरव्यक्तियोंकेरहनेकीव्यवस्थाशामिलथी।
यूरोप वासी ईसाई बन गए थे लेकिन अभी भी कुछ हद तक चमत्कार और रीति-रिवाजों से जुड़े
अपने पुराने विश्वास को नहीं छोड़ा था।
चौथी सदी से ही क्रिसमस और ईस्टर कैलेंडर की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ बन गए 25 दिसम्बर को मनाए जाने वाले ईसा मसीह के जन्मदिन ने एक पुराने पूर्व- रोमन त्योहार का स्थान ले लिया।
ईस्टर ईसा के शूलारोपण और उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक था।
काम से दबे कृषक इन पवित्र दिनों/छुट्टियों (Holy days/Holidays) का स्वागत इसलिए करते थे
क्योंकि इन दिनों उन्हें कोई काम नहीं करना पड़ता था।
वैसे तो यह दिन प्रार्थना करने के लिए था परन्तु लोग सामान्यतः इसका अधिकतर समय मौज-मस्ती करने और दावतों में बिताते थे।
तीर्थयात्रा, ईसाइयों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी, और बहुत से लोग शहीदों की समाधियों या बड़े गिरजाघरों की लंबी यात्राओं पर जाते थे।
तीसरावर्ग–किसान स्वतंत्रऔरबंधक
किसानवर्गतीसरावर्गथा
यहएकविशालसमूहथाजोपहलेदोवर्गोंकाभरण-पोषणकरतेथे
कृषकदोप्रकारकेथे
1.स्वतंत्रकिसान
2.दास ( कृषिदास )
पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान आवश्यक होता था (वर्ष में कम से कम चालीस दिन)।
कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे।
इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे 'श्रम-अधिशेष' (Labourrent) कहते थे, सीधे लॉर्ड के पास जाता था।
इसके अलावा उनसे अन्य श्रम कार्य जैसे - गड्ढे खोदना, जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करना, बाड़ बनाना और सड़कें व इमारतों की मरम्मत करने की भी उम्मीद की जाती थी और इनके लिए उन्हें कोई मज़दूरी नहीं मिलती थी।
खेतों में मदद करने के अतिरिक्त, स्त्रियों व बच्चों को अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। वे सूत काते, कपड़ा बुनते मोमबत्ती बनाते और लॉर्ड के उपयोग हेतु अंगूरों से रस निकाल कर मदिरा तैयार करते थे।
इसके साथ ही एक प्रत्यक्ष कर 'टैली' (Tallle) था जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाते थे (पादरी और अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे)।
कृषिदास अपने गुजारे के लिए लॉई की भूमि पर कृषि करते थे इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लॉर्ड को ही मिलती थी।
वे उन भूखंडों पर भी कृषि करते थे जो केवल लॉर्ड के स्वामित्व में थी। इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी और ये लॉर्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे।
कृषि दासों ( सर्फ) केवल अपने लॉर्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे और उनकी मदिरा संपीडक में ही मंदिरा और बीयर तैयार कर सकते थे।
लॉर्ड यह तय कर सकता था कि कृषिदास को किसके साथ विवाह करना चाहिए या फिर कृषिदास की पसंद को हो अपना आशीर्वाद दे सकता था
इंग्लैण्ड
सामंतवाद का विकास इंग्लैंड में ग्याहरवीं सदी से हुआ।
छठी सदी में मध्य यूरोप से एजिल (Angles) और सैक्सन (Saxons) इंग्लैंड में आकर बस गए।
इंग्लैंड देश का नाम 'एंजिल लैंड' का रूपांतरण है।
ग्याहरवीं सदी में नारमैडी (Normandy) के ड्यूक विलियम ने एक सेना के साथ इंग्लिश चैनल (English channel) को पार कर इंग्लैंड के सैक्सन राजा को हरा दिया।
इस समय, फ्रांस और इंग्लैंड में क्षेत्रीय सीमाओं और व्यापार से उत्पन्न होने वाले विवादों के कारण प्रायः युद्ध होते रहते थे।
विलियम प्रथम ने भूमि नपवाई और उसके नक्शे बनवाए और उसे अपने साथ आए 180 नॉरमन अभिजातों में बाँट दिए।
सामाजिक, आर्थिकसम्बन्धकोप्रभावितकरनेवालेकारक
1. पर्यावरण
2. भूमि का उपयोग
3. नयी कृषि प्रोद्योगिकी
पाँचवीं से दसवीं सदी तक यूरोप का अधिकांश भाग विस्तृत वनों से घिरा हुआ था। अतः कृषि के लिए उपलब्ध भूमि सीमित थी।
कृषक अत्याचार से बचने के लिए वहाँ से भाग कर वनों में शरण ले सकते थे। इस समय यूरोप में तीव्र ठंड का दौर चल रहा था। इससे सर्दियाँ प्रचंड और लंबी अवधि की हो गईं। फसलों का उपज काल छोटा हो गया और इसके कारण कृषि की पैदावार कम हो गई।
ग्यारहवीं सदी से यूरोप में एक गर्माहट का दौर शुरू हो गया और औसत तापमान बढ़ गया जिससे कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ा। कृषकों को कृषि के लिए अब लंबी अवधि मिलने लगी।
मिट्टी पर पाले का असर कम होने के कारण आसानी से खेती की जा सकती थी।
यूरोप के अनेक भागों के वन क्षेत्रों में उल्लेखनीय कमी हुई फलस्वरूप कृषि भूमि का विस्तार हुआ।
शुरुआत में, कृषि प्रौद्योगिकी बहुत आदिम किस्म थी। यांत्रिक मदद के रूप में किसान के पास केवल बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल था।
यह हल केवल पृथ्वी की सतह को खुरच ही सकता था। यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी तरह से बाहर निकाल पाने में असमर्थ था। इसलिए कृषि में अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता था।
भूमि को प्रायः चार वर्ष में एक बार हाथ से खोदा जाता था और उसमें अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती थी।
साथ ही फ़सल चक्र के एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग हो रहा था। भूमि को दो भागों में बाँट दिया जाता था एक भाग में शरद ऋतु में गेहूं बोया जाता था जबकि दुसरे भूमि को खाली रखा जाता था अगले वर्ष इस भूमि पर राई बोई जाती थी
इस व्यवस्था के कारण, मिट्टी की उर्वरता का हास होने लगा और प्राय: अकाल पड़ने लगे। दीर्घकालिक कुपोषण और विनाशकारी अकाल बारी-बारी से पड़ने लगे जिससे गरीबों के लिए जीवन अत्यंत दुष्कर हो गया।
नए नगर और नगरवासी कृषि में विस्तार हुआ और इसके साथ ही जनसंख्या, व्यापार और नगरों का भी विस्तार हुआ यूरोप की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी लोगों को बेहतर आहार मिल रहा था जिससे लोगों की जीवन-अवधि बढ़ गयी थी तेरहवीं सदी तक एक औसत यूरोपीय आठवीं सदी की तुलना में दस वर्ष अधिक जी सकता था।
पुरुषों की तुलना में स्त्रियों और बालिकाओं की जीवन-अवधि छोटी होती थी क्योंकि पुरुष बेहतर भोजन करते थे।रोमन साम्राज्य के पतन के बाद उसके नगर उजाड़ और तबाह हो गए थे।
परन्तु ग्यारहवीं सदी से जब कृषि का विस्तार हुआ और वह अधिक जनसंख्या का भार सहने में सक्षम हुई तो नगर फिर से बढ़ने लगे। जिन कृषकों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न होता था.उन्हें ऐसे स्थान की जरूरत महसूस हुई जहाँ वे अपना एक बिक्री केन्द्र स्थापित कर सकें और जहाँ से वे अपने उपकरण और कपड़े खरीद सकें।
इस ज़रूरत के कारण छोटे विपणन केन्द्रों का विकास किया गया जिनमें धीरे-धीरे नगरों के लक्षण विकसित होने लगे नगरों में लोग बसे , यहाँ सुविधाएँ मौजूद होती थी 'नगर की हवा स्वतंत्र बनाती है' एक प्रसिद्ध कहावत थी। स्वतंत्र होने की इच्छा रखने वाले अनेक कृषिदास भाग कर नगरों में छिप जाते थे।
अपने लॉर्ड की नज़रों से एक वर्ष व एक दिन तक छिपे रहने में सफल रहने वाला कृषिदास एक स्वाधीन नागरिक बन जाता था।
नगरों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो स्वतंत्र कृषक या भगोड़े कृषिदास थे जो कार्य की दृष्टि से अकुशल श्रमिक होते थे। दुकानदार और व्यापारी बहुतायत में थे। बाद में विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों जैसे साहूकार और वकीलों की आवश्यकता हुई।
बड़े नगरों की जनसंख्या लगभग तीस हज़ार होती थी। ये कहा जा सकता है कि उन्होंने समाज में एक चौथा वर्ग बना लिया था।
'श्रेणी' (Guild)
आर्थिक संस्था का आधार 'श्रेणी' (Guild) था। प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक 'श्रेणी' के रूप में संगठित था। यह एक ऐसी संस्था थी जो उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियंत्रण रखती थी।
'श्रेणी सभागार' प्रत्येक नगर का आवश्यक अंग था।
पहरेदार नगर के चारों ओर गश्त लगाकर शांति स्थापित करते थे,
संगीतकारों को प्रीतिभोजों और नागरिक जुलूसों में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया जाता था और सरायवाले यात्रियों की देखभाल करते थे।
ग्यारहवीं सदी आते-आते पश्चिम एशिया के साथ नवीन व्यापार मार्ग विकसित हो रहे थे स्कैंडिनेविया के व्यापारी वस्त्र के बदले में फ़र और शिकारी बाज़ लेने के लिए उत्तरी सागर से दक्षिण की समुद्री यात्रा करते थे
अंग्रेज़ व्यापारी राँगा बेचने के लिए आते थे बारहवीं सदी तक फ्रांस में वाणिज्य और शिल्प विकसित होने लगा था।
पहले, दस्तकारों को एक मेनर से दूसरे मेनर में जाना पड़ता था पर अब उन्हें एक स्थान पर बसना अधिक आसान लगा, जहाँ वस्तुओं का उत्पादन किया जा सके और फिर अपनी आजीविका के लिए उनका व्यापार हो सके।
जैसे-जैसे नगरों की संख्या बढ़ने लगी और व्यापार का विस्तार होता गया, नगर के व्यापारी अधिक अमीर और शक्तिशाली होने लगे
कथीड्रल नगर
अमीर व्यापारी अपने धन को खर्च करने के लिए चर्चों को दान देते थे बारहवीं सदी से फ्रांस में कथीड्रल कहलाने वाले बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा।
यद्यपि वे मठों की संपत्ति थे पर लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं और धन से उनके निर्माण में सहयोग दिया।
कथीड्रल पत्थर के बने विशाल चर्च होते थे इन्हें बनाने में अनेक वर्ष लगते थे।
जब इन्हें बनाया जा रहा था तो कथीड्रल के आसपास का क्षेत्र और अधिक बस गया और जब उनका निर्माण पूर्ण हुआ तो वे स्थान तीर्थ-स्थल बन गए।
इस प्रकार, उनके चारों तरफ छोटे नगर विकसित हुए। कथीड्रल को ऐसे बनाया जाता था कि पादरी की आवाज़ लोगों के जमा होने वाले सभागार में साफ सुनाई देती थी , भिक्षुओं के द्वारा गाये गए गीत भी अधिक मधुर सुनाई पड़े, साथ ही लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घंटियाँ दूर तक सुनाई पड़ सकें।
खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग होता था। दिन के वक्त सूरज की रोशनी उन्हें कथीड्रल के अंदर के व्यक्तियों के लिए चमकदार बना देती थी और सूर्यास्त के पश्चात मोमबत्तियों की रोशनी उन्हें बाहर के व्यक्तियों के लिए दृश्यमान बनाती थी।
अभिरंजित काँच की खिड़कियों पर बने चित्र बाईबल की कथाओं का वर्णन करते थे जिन्हें अनपढ़ व्यक्ति भी 'पढ़' सकते थे।
चौदहवीं सदी का संकट
14वीं सदी की शुरुआत तक यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ गया। ऐसा तीन कारकों की वजह से हुआ।
उत्तरी यूरोप में, तेरहवी सदी के अंत तक पिछले तीन सौ वर्षों की तेज़ ग्रीष्म ऋतु का स्थान तीव्र ठंडी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया था।
पैदावार वाले मौसम छोटे हो गए और ऊँची भूमि पर फसल उगाना कठिन हो गया।
तूफानों और बाढ़ों ने अनेक फार्म प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दिया जिसके परिणामस्वरूप सरकार को करों द्वारा कम आमदनी हुई।
भूमि का उपजाऊपन कम हो गया था ऐसा उचित भू-संरक्षण के अभाव में ऐसा हुआ था।
चरागाहों की कमी के कारण पशुओं की संख्या में कमी आ गई।
जनसंख्या वृद्धि इतनी तेजी से हुई कि उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए , ऐसा अकाल के कारण हुआ था ।
1315 और 1317 के बीच यूरोप में भयंकर अकाल पड़े इसके पश्चात् 1320 के दशक में पशुओं की मौतें हुई।
इसके साथ-साथ ऑस्ट्रिया और सर्विया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी के कारण धातु मुद्रा में भारी कमी आई जिससे व्यापार प्रभावित हुआ।
इसके कारण सरकार को मुद्रा में चाँदी की शुद्धता को घटाना पड़ा और उसमें सस्ती धातुओं का मिश्रण करना पड़ा।
बारहवीं व तेरहवीं सदी में जैसे-जैसे वाणिज्य में विस्तार हुआ तो दूर देशों से व्यापार करने वाले पोत यूरोपीय तटों पर आने लगे।
पोतों के साथ-साथ चूहे आए जो अपने साथ ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण (Black death) लाए।
पश्चिमी यूरोप, 1347 और 1350 के मध्य महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ।
व्यापार केन्द्र होने के कारण नगर सबसे अधिक प्रभावित हुए।
मठों और आश्रमों में जब एक व्यक्ति प्लेग की चपेट में आ जाता था तो सबको इससे बीमार होने में देर नहीं लगती थी और लगभग प्रत्येक मामले में कोई भी नहीं बचता था।
प्लेग, शिशुओं, युवाओं और बुर्जुगों को सबसे अधिक प्रभावित करता था। इस प्लेग के पश्चात 1360 और 1370 में प्लेग की अपेक्षाकृत छोटी घटनाएँ हुई।
यूरोप की जनसंख्या 1300 में 730 लाख से घटकर 1400 में 450 लाख हो गई
इस विनाश लीला के साथ आर्थिक मंदी के जुड़ने से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ।
जनसंख्या में हास के कारण मज़दूरों की संख्या में अत्यधिक कमी आई।
कृषि और उत्पादन के बीच गंभीर असंतुलन उत्पन्न हो गया क्योंकि इन दोनों ही कामों में पर्याप्त संख्या में लग सकने वाले लोगों में भारी कमी आ गई थी।
खरीदारों की कमी के कारण कृषि उत्पादों के मूल्यों में कमी आई प्लेग के बाद इंग्लैंड में मज़दूरों, विशेषकर कृषि मजदूरों की भारी माँग के कारण मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई।
बचा हुआ श्रमिक बल अब अपनी पुरानी दरों से दुगुने की माँग कर सकता था।
सामाजिक असंतोष
लॉर्ड की आमदनी बुरी तरह प्रभावित हुई। अभिजात वर्ग की आमदनी घटने का मुख्य कारण मजदूरी की दरें बढ़ना और कृषि संबंधी मूल्यों की गिरावट थी निराशा में लॉर्ड ने उन धन संबंधी अनुबंधों को तोड़ दिया जिसे उन्होंने हाल ही में अपनाया था और उन्होंने पुरानी मजदूरी सेवाओं को फिर से प्रचलित कर दिया।
इसके बाद कृषकों , खासकर पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया।
सन 1323 में कृषकों ने फ्लैंडर्स (Flanders) में 1358 में फ्रांस में और 1381 में इंग्लैंड में विद्रोह किए।
इन विद्रोहों का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया गया ये विद्रोह सर्वाधिक हिंसक तरीकों से उन स्थानों पर हुए जहाँ पर आर्थिक विस्तार के कारण समृद्धि हुई थी।
यह इस बात का संकेत था कि कृषक पिछली सदियों में हुए लाभों को बचाने का प्रयास कर रहे थे। तीव्र दमन के बावजूद कृषक विद्रोहों की तीव्रता ने यह सुनिश्चित कर दिया कि पुराने सामंती रिश्तों को पुनः लादा नहीं जा सकता।
धन अर्थव्यवस्था (money economy) काफी अधिक विकसित थी जिसे पलटा नहीं जा सकता था इसलिए, यद्यपि लॉर्ड विद्रोहों का दमन करने में सफल रहे, परन्तु कृषकों ने यह सुनिश्चित कर लिया कि गुलामी के पुराने दिन फिर नहीं लौटेंगे।
राजनीतिक परिवर्तन
पंद्रहवीं और सोलहवीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति को बढ़ाया।
यूरोप के लिए उनके द्वारा बनाए गए नए शक्तिशाली राज्य उस समय होने वाले आर्थिक बदलावों के समान थे इतिहासकार इन राजाओं को 'नए शासक' (the new monarchs) कहने लगे।
फ्रांस में लुई ग्यारहवें आस्ट्रिया में मैक्समिलन, इंग्लैंड में हेनरी सप्तम स्पेन में ईसाबेला और फरडीनैंड, यह सभी निरकुंश शासक थे जिन्होंने संगठित स्थायी सेनाओं की प्रक्रिया, एक स्थायी नौकरशाही और राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया को शुरू किया।
स्पेन और पुर्तगाल ने यूरोप के समुद्र पार विस्तार की नई संभावनाओं की शुरुआत की। बारहवीं और तेरहवीं सदी में होने वाला सामाजिक परिवर्तन इन राजतंत्रों की सफलता का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण था।
जागीरदारी (Vassalage) और सामंतशाही (lordship) वाली सामंत प्रथा के विलयन और आर्थिक विकास की धीमी गति ने इन शासकों को प्रभावशाली और सामान्य जनों पर अपने नियंत्रण को बढ़ाने का पहला मौका दिया।
शासकों ने सामंतों से अपनी सेना के लिए कर लेना बंद कर दिया और उसके स्थान पर बंदूकों और बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना बनाई जो पूर्ण रूप से उनके अधीन थी
करों को बढ़ाने से शासकों को पर्याप्त राजस्व प्राप्त हुआ जिससे वे पहले से बड़ी सेनाएँ रख सके।
इस तरह उन्होंने अपनी सीमाओं की रक्षा और विस्तार किया तथा राजसत्ता के प्रति होने वाले आंतरिक प्रतिरोधों को दबाया।
अभिजात वर्ग इसका विरोध करते थे , राजसत्ता के विरुद्ध हुए विरोधों का एक समान मुद्दा कराधान था।
इंग्लैंड में विद्रोह हुए जिनका 1497, 1536, 1547, 1549 और 1553 में दमन कर दिया गया।
फ्रांस में लुई X1 (1461-83) को ड्यूक लोगों और राजकुमारों के विरुद्ध एक लंबा संघर्ष करना पड़ा।
अभिजातों और स्थानीय सभाओं के सदस्यों ने भी अपनी शक्ति के जबरदस्ती हड़पे जाने का विरोध किया।
सोलहवीं सदी में फ्रांस में होने वाले 'धर्मयुद्ध' कुछ हद तक शाही सुविधाओं और क्षेत्रीय स्वतंत्रता के बीच संघर्ष थे।
अभिजात वर्ग ने अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए एक चतुरतापूर्ण परिवर्तन किया।नई शासन व्यवस्था के विरोधी रहने के स्थान पर उन्होंने जल्दी ही अपने को राजभक्तों में बदल लिया।
इसी कारण से शाही निरंकुशता को सामंतवाद का परिष्कृत रूप माना जाता है।
फ्रांस और इंग्लैंड का बाद का इतिहास इन शक्ति संरचनाओं में हो रहे परिवर्तनों से बना था।
1614 में बालक शासक लुई XIII के शासनकाल में फ्रांस को परामर्शदात्री सभा, जिसे एस्ट्रेटस जनरल कहते थे (जिसके तीन सदन थे, जो तीन वर्गों पादरी वर्ग, अभिजात वर्ग तथा अन्य का प्रतिनिधित्व करते थे) का एक अधिवेशन हुआ।
इसके पश्चात दो सदियों 1789 तक इसे फिर नहीं बुलाया गया क्योंकि राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति बाँटना नहीं चाहते थे।
इंग्लैंड में नॉरमन विजय से भी पहले एंग्लो-सैक्सन लोगों की एक महान परिषद होती थी। कोई भी कर लगाने से पहले राजा को इस परिषद की सलाह लेनी पड़ती थी।
यह आगे चलकर पार्लियामेंट के रूप में विकसित हुई जिसमें हाउस ऑफ लॉर्ड्स, जिसके सदस्य लॉर्ड और पादरी थे व हाउस ऑफ कामन्स, जो नगरों व ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते थे शामिल थे।
राजा चार्ल्स प्रथम (1629-40) ने पार्लियामेंट को बिना बुलाए ग्यारह वर्षों तक शासन किया। इंग्लैंड में नॉरमन विजय से भी पहले एंग्लो-सैक्सन लोगों की एक महान परिषद होती थी।
कोई भी कर लगाने से पहले राजा को इस परिषद की सलाह लेनी पड़ती थी। यह आगे चलकर पार्लियामेंट के रूप में विकसित हुई
जिसमें हाउस ऑफ लॉर्ड्स, जिसके सदस्य लॉर्ड और पादरी थे व हाउस ऑफ कामन्स, जो नगरों व ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते थे शामिल थे।
राजा चार्ल्स प्रथम (1629-40) ने पार्लियामेंट को बिना बुलाए ग्यारह वर्षों तक शासन किया।